दुष्टता का फल (Dushtata Ka Fal) Result of Wickedness

दुष्टता का फल (Result of Wickedness)

दो व्यापारी थे। दोनों का काम ब्याज पर धन उधार देना था। एक व्यापारी का दिल बड़ा क्रूर था। दूसरा उदार दिल का व्यापारी था। वह दूसरों की विवशता को समझता था। वह कम ब्याज पर ऋण देता था और ग्राहकों के साथ उदारता का व्यवहार करता था।

क्रूर व्यापारी के पास कोई घोर आपत्ति में फँसा हुआ व्यक्ति ही ऋण लेने जाता। इस बात से उसके मन में ईर्ष्या होने लगी। वह सोचने लगा कि दूसरा व्यापारी मेरा कारोबार खत्म करने पर तुला है। कैसे भी हो इसका बदला लेना चाहिए।

जिस राज्य में ये दोनों रहते थे, वहाँ के राजा का कोई पुत्र नहीं था। बस एक कन्या थी। उस देश की परम्परा भी ऐसी ही थी कि चाहे पुत्र हो या पुत्री, राजा की संतान ही गद्दी पर बैठती थी। कन्या का विवाह भी नहीं हुआ था कि राजा का देहांत हो गया।

मरते समय उसने अपनी पुत्री से कहा, “बेटी ! मैं अपने हाथों से तुम्हारा विवाह नहीं कर सका, इसका मुझे बेहद अफसोस है, अब तुम अपना जीवन साथी अपनी पसंद से ही चुन लेना, पर किसी के प्रेम में फँसकर नहीं, गुणों की परीक्षा करके चुनना।”

राजा की मृत्यु के बाद राजकुमारी ने राजकाज सँभाला। अपना जीवन साथी चुनने के लिए उसने एक युक्ति निकाली। उसने एक सोने की, एक चाँदी की और एक लोहे की-तीन पेटियाँ बनवायीं और नगर में उद्घोषणा करवायी – जो राजकुमार इस राजकुमारी से विवाह करना चाहे, उसे राजकुमारी द्वारा ली गयी परीक्षा में उत्तीर्ण होना होगा।

परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर राजकुमारी के साथ विवाह हो जायेगा। अनुत्तीर्ण प्रत्याशियों को महल में ही बंद रखा जायेगा और उनसे चक्की पिसवायी जायेगी। घोषणा सुनकर अनेक राजकुमारों ने किस्मत आजमाने की सोची। उनका मानना था-चक्की फेरनी पड़े तो कोई बात नहीं, यदि राजकुमारी से विवाह हो जाये तो इतना बड़ा साम्राज्य भी मिल जायेगा।

अब अनेक देशों के राजकुमार धीरे-धीरे वहाँ पहुँचने लगे। राजकुमारी एक-एक को बुलाकर पूछती, “इन तीन पेटियों में से किस पेटी में मेरा फोटो है?” साधारणतः कोई भी राजकुमार सोने या चाँदी की पेटी का ही नाम लेता। फलस्वरूप उसे भीतर पहुँचाकर बंद कर दिया जाता।

कम ब्याज लेने वाले व्यापारी के एक मित्र का मन भी राजकुमारी से शादी करने के लिए ललक उठा। उसके पास राजदरबार में जाने योग्य पोशाक नहीं थी। वह व्यापारी के पास पहुँचा और बोला, “मुझे कुछ धन चाहिए।” व्यापारी ने कहा, “अभी तो धन मेरे पास नहीं है।” मित्र ने आग्रह किया, “कहीं से भी, कैसे भी जुटाकर दो। मुझे राजकुमारी से शादी करने जाना है। इसके लिए मुझे कीमती पोशाक की आवश्यकता है।”

व्यापारी अपने मित्र का आग्रह टाल नहीं सका। वह अधिक ब्याज वसूल करने वाले उस व्यापारी के पास गया और बोला, “मुझे धन की बहुत आवश्यकता है, आप जो चाहें ब्याज ले लीजिए।” व्यापारी ने अपने प्रतिस्पर्धी को ऋण देकर बदला लेने की सोची। वह बड़ी मीठी वाणी में बोला, “भाई ! तुम्हारा और मेरा तो एक ही धंधा है, भला तमसे क्या ब्याज लेना, तुम चाहो जितना धन ले।

जाओ, और अपने समय पर वापस दे जाना। हाँ, यदि समय पर धन नहीं लौटाया तो फिर मेरी एक शर्त है वह तुम्हें मंजूर हो तो देख लो।” व्यापारी बोला, “ठीक है, आप मुझे अपनी शर्त बताओ।”
“शर्त और कुछ नहीं, यदि समय पर धन नहीं लौटाया तो तुम्हें अपने कलेजे का दस तोला माँस देना होगा।” दुष्ट व्यापारी ने शर्त बतायी।

शर्त सुनते ही एक बार तो उसका कलेजा काँप उठा। लेकिन उसे विश्वास था कि नियत तिथि तक वह धन का बंदोबस्त कर लेगा। वह बोला, “ठीक है, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है।” उसने लिखा-पढ़ी कर दी और धनराशि लाकर मित्र को दे दी। उसने मित्र को शर्त के बारे में कुछ नहीं बताया।

मित्र सुंदर पोशाक पहनकर राजकुमारी के पास गया। राजकुमारी ने तीनों पेटियाँ दिखाकर पूछा, “बोलो, मेरा फोटो किस पेटी में है?”

Dushtata Ka Fal
Dushtata Ka Fal

उसने सोचा-सोने-चाँदी की पेटी तो सबने ही बतायी होगी। मैं लोहे की पेटी बताकर देखें। उसने कहा, “राजकुमारी! आपका फोटो इस लोहे की पेटी में है।” सही उत्तर पाकर राजकुमारी अत्यधिक प्रसन्न हुई। अब ठाठ-बाट से राजकुमारी का विवाह उसके साथ हो गया। वह आनंद से रहने लगा। मित्र के ऋण की बात वह भूल गया।

इधर अधिक ब्याज लेने वाला क्रूर व्यापारी नियत तिथि का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। जब समय पूरा होने को आया तो उसने कर्जदार व्यापारी को सूचित भी कर दिया। परंतु देनदार व्यापारी के पास धन का प्रबंध नहीं हो सका। इधर समय पूरा होते ही क्रूर व्यापारी बहुत खुश हुआ।

उसने सोचा-बस, अब पूरा बदला लेने का समय आ गया है। इसने मेरा व्यापार तोड़ा है, मैं इसे कानून का सहारा लेकर समाप्त कर डालूँगा। उदार व्यापारी को उसने सूचना दी-समय खत्म हो चुका है, अब अपने कलेजे का दस तोला माँस दो। उदार व्यापारी ने बहुत अनुनय-विनय की लेकिन वह दुष्ट टस से मस नहीं हुआ।

वह बोला, “समय समाप्त हो चुका है अब तो मैं दस गुनी रकम में भी नहीं मानूँगा। मुझे तो वायदे के अनुसार तुम्हारे कलेजे का 10 तोला माँस ही चाहिए। आखिर मुकदमा न्यायालय में गया। लिखा-पढ़ी के अनुसार दुष्ट व्यापारी का पक्ष बहुत मजबूत था। वकील ने कहा, “तुम्हें कानून के अनुसार 10 तोला माँस देना ही पड़ेगा।

आखिर, जब बचने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो उसने अपने मित्र को पत्र लिखा। पत्र में उसने पूरी घटना का उल्लेख करते हुए लिखा, “मैं भयंकर विपत्ति में फँसा हूँ। एक बार तुझसे मिलना चाहता हूँ।” मित्र का पत्र मिलते ही वह सीधा न्यायालय में पहुँचा। घबराकर पत्र महल में भूल आया।

इधर वह पत्र राजकुमारी के हाथ लग गया। उसने पढ़ा तो उसका हृदय विचलित हो उठा। उसने सोचा, “वह व्यापारी कितना भला इंसान होगा। उसने अपने मित्र के लिए जान खतरे में डाल दी है। मुझे अपने पति के मित्र की रक्षा करनी चाहिए।

राजकुमारी ने न्यायाधीश को आदेश भेजा, “इस मुकदमे की सुनवाई कल होगी। आप इस बात की घोषणा कर दीजिए कि मामले की सुनवायी और फैसले के लिए नये न्यायाधीश आ रहे हैं।” न्यायालय में घोषणा हो गयी। चारों ओर सनसनी फैल गयी। इस मुकदमे की सुनवाई के लिए नये न्यायाधीश आ रहे हैं।

दूसरे दिन न्यायालय के हॉल और गैलरियाँ खचाखच भर गयीं। लोग फैसला जानने के लिए इच्छुक थे। समय पर नये न्यायाधीश पधारे। देखने में नवयुवक थे। व्यवहार से अनुभवी लग रहे थे। न्याय की कुर्सी पर बैठे। दोनों व्यापारी कटघरे में खड़े थे। दुष्ट व्यापारी ने अपनी बात सुनायी और कहा, “न्यायमूर्ति ! मैं न्याय की माँग करता हूँ। जो लिखा-पढ़ी हुई उसका पालन होना चाहिए।”

उदार व्यापारी ने कहा, “मैं अपनी जान की रक्षा के बदले दुगनी, चौगुनी रकम दे सकता हूँ। उसकी ओर से मित्र भी खड़ा हुआ और बोला, “हम करोड, दो करोड रुपये भी दे देंगे। यह मेरी हीरों की अंगठी करोड़ों रुपये की है, इसे भी मैं आपके सामने रख देता हूँ किंतु मेरे मित्र की जान बचनी चाहिए।”

दोनों ओर की पैरवी सुनकर न्यायाधीश ने कहा, “तुम जो चाहो, जितने चाहो रुपये ले लो परंतु इसके कलेजे का माँस लेने की जिद मत करो।”

व्यापारी ने कहा, “मुझे धन नहीं चाहिये। मुझे तो वायदे के अनुसार वही चीज चाहिए जो हमने लेना तय किया है।” बहुत समझाने-बुझाने पर जब वह नहीं माना तो न्यायाधीश ने कहा, “ठीक है, कानून के अनुसार तुम इसके कलेजे का मॉस ले सकते हो।

यह लो छुरी और अपना कर्ज वसूल कर लो।” जब उसके हाथ में छुरी दी गयी तो जनता में हाहाकार मच गया- “यह क्या! नये न्यायाधीश ने तो गजब ढा दिया।”

दुष्ट व्यापारी दिल ही दिल में बहुत खुश था। वह उदार व्यापारी के पास पहुँचा और छुरी की धार देखने लगा। तभी न्यायाधीश ने कड़ककर कहा, “ठहरो, तुम अपने वायदे के अनुसार इसके कलेजे का माँस ले सकते हो, किंतु इस बात का ध्यान रखना कि माँस 10 तोले से ज्यादा भी नहीं होना चाहिए और न ही कम।

जितना तय हुआ है उतना ही माँस ले सकते हो। एक कतरा भी खून नहीं ले सकते। यदि खून का एक कतरा भी लिया तो बदले में तम्हारी जान ले ली जायेगी।”

Dushtata Ka Fal in Court
Dushtata Ka Fal in Court

न्यायाधीश की शर्त सुनते ही व्यापारी के हाथ से छुरी गिर पड़ी। जनता तालियाँ पीटने लगी। न्यायाधीश ने व्यापारी से कहा, “अब तुम रुक क्यों गये, लिखा-पढ़ी के अनुसार हिसाब पूरा करो। न्यायाधीश ने फैसला दिया है, इसका पालन नहीं किया तो तुम अपराधी होंगे, और तुम्हें सजा मिलेगी।”

दुष्ट व्यापारी ने न्यायाधीश के चरण पकड़ लिए और बोला, “मुझे क्षमा कर दीजिए न मुझे माँस चाहिए न ही रकम। मैं इस मुकदमे को वापिस लेता हूँ।”

“तुम्हारे जैसे दुष्ट व्यक्ति समाज व देश के लिए खतरनाक होते हैं। तुमने ईर्ष्या और स्पर्धा के वशीभूत होकर एक निरपराध व्यक्ति की जान लेने की साजिश की है, समाज में शांति एवं न्याय के लिए तुम्हें जीवन-भर जेल की सीखचों में बंद किया जाता है।”

यह कहानी अंग्रेजी के महान साहित्यकार शेक्सपियर के एक नाटक से ली गई है।

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